हाँ दीवारों के कान होते है
पर उन चाय की टपरियों का क्या जिनके दिल भी होते है
और ज़हीर सी बात है होते होंगे कुछ एहसास भी
राजनैतिक गरमा गर्मी से ले कर
किसके नयन किससे लड़े सब जानती होंगी
कितनो को रोका, बैठाया और फिर जाने दिया
और कितनो को उम्र भर का इंतज़ार कराया
कितनो के आंसू पोछने चाहे
और कितनो के बहने दिये ये जानते हुए की सब व्यर्थ है
कुछ अगर सच है
तो बस एक कप चाय,
चार बातें
और वही चार दोस्त
जो आज अगर गये तो कल लौट कर आयेंगे या नहीं ,पता नहीं
फ़िर एक लंबा इंतज़ार और नये चेहरे
पुराने चेहरे भुलाना हम लोगों के लिए जितना मुश्किल है
उतना नामुमकिन है उस एक टपरी के लिये
और नये चेहरे?
हम उन्हें जितनी आसानी से नकार देते है
वह उतनी ही आसानी से उन्हें अपना लेती है
और हम में और उसमे फ़र्क़ ये है
की हमने अक्सर बढ़ते रहना सीखा है
और उसने जाने देने की कला को अपनाया है
वैसे भी
वक़्त के साथ
लोग बदलते हैं
बातें नहीं
चाय नहीं
और ना ही टपरी