अपना पराया

की आखिर क्यों कोई शहर, कोई जगह अपनी सी लगती है की जैसे घर के परे हो घर कोई या की शायद घर से ज्यादा की जैसे अनजान होकर भी जानी पहचानी जैसे बुला रही हो तुम्हे की जैसे ठहरने के लिए जिस मुकाम का इंतजार तुम कर रहे थे वह तुम्हारे इंतजार में जाने […]

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