पांचाली के थे सखा तुम
बचपन से ही उसके सब सवालों का जवाब बतलाया था
था उसका स्वयंवर मगर
वर का चुनाव तुमने ही करवाया था
उछाली गई इज्जत उसकी सभा में जब
चीर हरण से तुम ने ही बचाया था
और उस क्षति के बदले
क्रोध कर प्रण तुमने ही दिलवाया था
पांच ग्राम की बात उठी जब
नकुल से प्रस्ताव तुमने ही बनवाया था
दुर्योधन की सभा में प्रस्ताव रखा तुम्हीं ने
ना मानने पर जंग का ऐलान तुम्हीं ने करवाया था
बने थे तुम सारथी
अर्जुन को धर्म का पाठ तुम्हीं ने पढ़ाया था
युद्ध क्षेत्र में अपना पराया भूलवाया तुमने था उसे
कर्म के नाम पर निहत्थे कर्ण पर वार तुम्हीं ने करवाया था
हां माना, था दुर्योधन दुष्ट
उसने स्त्री पर जोर आजमाया था
तुमने भी तो छल किया
और उसकी जंगा को तुड़वाया था
मलयुद्ध के बीच तुमने कहा यूं तो था कुछ नहीं मगर
कुछ नहीं में भी तुमने बहुत कुछ बताया था
अब कह लो छल या की तुमने
पापी को उसका स्थान दिखाया था
अभिमन्यु को ना बचा सके मगर
उसके पुत्र को तुमने बचाया था
अश्वत्थामा का रोका था वार
और श्राप भी तुमने सुनाया था
फिर युद्ध की समाप्ति हुई
मगर तुम्हारा कार्य अभी बकाया था
तुम तो क्षमा मांगने गए थे मगर
माता गांधारी का श्राप भी तुमने खुशी खुशी अपनाया था
तुमने देखा था सब कुछ
सब कुछ तुमने ही करवाया था
आब कह लो महागाथा या कहो रण
सब तुमने ही रचाया था
युद्ध क्षेत्र में भी तुमने
अनोखा ज्ञान बताया था
फिर भी मेरी नादानी है, मात्र एक प्रश्न हूं लई
तुम जानते सब कुछ थे फिर ज्ञान के लिए महाभारत ही क्यूं करवाई